Poetry
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वादा(नज़्म)
तेरे लब पे मेरा नाम नहीं तो ना सही
काँपते होंठों पे अफ़र्सुदगी क्यूं छायी है?
अश्कों का सैलाब बहने को बेक़रार गर
यूं समझ फिर कि शाम वही आयी है
मेरा नाम, मेरी याद, वो सारे लम्हे
बह जाने दे गर्म आँसुओं के संग,और
होंठों पे तबस्सुम की कली खिलने दे
औक़ात बर्क की नहीं मेरा नशेमन तोड़े
तेरी उदासी मगर फ़ना कर देगी मुझे
तूने मुहब्बत की, मैंने मुहब्बत जी
क्या इतना काफ़ी नहीं जीने के लिए
अपनी बेवफाई से इतनी ही शिकायत है
तो सुन मेरा वादा है तुझसे आखिरी शाम
तीरगी में मेरी यादों के पन्ने पलटेगी
अश्क बनकर तेरे रुखसार को चूमूंगा मैं ! -
आहिस्ता से (ग़ज़ल)
दिल में एक पीर उठी है आहिस्ता से बेचैनी ये जान न ले ले आहिस्ता से।
नींद की बेवफाई दिखाने लगी असर महरुम हुआ सपनों से आहिस्ता से।
ख्वाब थे न उम्मीद बस दश्त था मेरा इस शहर ने दिए भरम आहिस्ता से।
भीड़ में हर शख्स ही मेरा हमशक़्ल था हाल पूछने न आया कोई आहिस्ता से।
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ज़ुल्म (ग़ज़ल)
पर्बत जुल्म का कटेगा नहीं बहाना पड़ेगा लहू की गंगा में उबाल अब लाना पड़ेगा।
चंद शातिर नहीं करेंगे किस्मत का फैसला ख़ुदा खुद को बनाके हुक्म बजाना पड़ेगा।
दो निवालों के लिए दोहरे हुए बदन, उफ्फ मंज़र ये और देखा तो ज़हर खाना पड़ेगा।
मुल्क तुमसे यूं ही बदलेगा ऐसी उम्मीद नहीं हाल बदलने को चार घरों का बोझ उठाना पड़ेगा।
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चंद अशआर
अल्फ़ाजों से सिर कलम करने का इरादा है ख़ुदा जाने नादानी है या उम्मीद ही ज्यादा है?
राजघाट पे इन दिनों अजीब सरगोशी है सुना है एक बूढ़ा अक़सर वहां रोता है।
किताबों में बहुत पढ़ा जीने का फ़लसफ़ा मौका जीने का आया तो हर हर्फ़ भूल गया।
परवाज़ का हौसला है तो खुला आस्मां देखिए जुनूं नहीं दोस्त तो बस आप ख़्वाब देखिए।
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